Father Property Rights: 2025 में बेटियों के लिए 3 बड़े झटके और 5 नए नियम

Published On: August 12, 2025
Father Property Rights

भारत में वर्षों से पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार को लेकर कई कानून और नियम बने हैं। पहले के समय में बेटियों को परिवार की संपत्ति या पैतृक जायदाद में हिस्सा नहीं मिलता था, लेकिन समय के साथ नियमों में बदलाव आए।

सरकार और न्यायपालिका ने महिलाओं के अधिकार को मजबूत करने के लिए कई सुधार किए, जिससे बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बराबर का हक मिलने लगा।

हालांकि, हाल ही में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार से बाहर किया जा सकता है। कई खबरों में बताया गया कि एक नया नियम आया है, जिससे बेटियां पिता की संपत्ति पाने के हक से बाहर हो जाएंगी।

यह खबर समाज में चिंता पैदा करने वाली रही है, खासतौर पर उन परिवारों में जहां बेटियों की शिक्षा और स्वतंत्रता पर जोर दिया जाता है। इस नए नियम या स्कीम को समझना बेहद जरूरी है ताकि लोग किसी गलतफहमी के शिकार न हों।

Father Property Rules 2025

असल में ऐसा कोई नया कानून नहीं आया है जिसमें बेटियों को पूरी तरह से पिता की संपत्ति से बाहर कर दिया गया हो। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2020 में एक अहम फैसला देते हुए कहा था कि बेटियां भी पिता की संपत्ति में बेटे की तरह बराबर की हकदार होंगी।

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के मुताबिक, किसी भी हिंदू पिता की मृत्यु के बाद उसकी बेटी को भी बेटे के बराबर हिस्सेदारी मिलेगी। यदि पिता ने वसीयत नहीं बनाई है, तो बेटी और बेटा दोनों को समान रूप से संपत्ति का अधिकार मिलेगा।

हालांकि, अगर पिता अपनी जीवनकाल में वसीयत बनाते हैं और उसमें साफ तौर से बेटी को संपत्ति से बाहर कर देते हैं, तो कानून उस वसीयत को मान्यता देता है। ऐसे में पिता की इच्छा का सम्मान होता है, पर बेटी को सीधे संपत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा।

सरकार की तरफ से ऐसा कोई स्कीम या कानून नहीं है जिसमें बेटियों को पैतृक संपत्ति के अधिकार से पूरी तरह बाहर कर दिया गया हो।

इसके अलावा, कुछ राज्यों और परिवारों में परंपरागत तौर पर बेटे को प्रमुख वारिस मानने की सोच रही है। लेकिन भारतीय कानून के अनुसार वसीयत या कानूनी दस्तावेज के बिना बेटी को भी बराबर का अधिकार है। यह नियम हिंदू परिवारों के लिए लागू है; मुस्लिम कानून, ईसाई कानून या अन्य निजी कानूनों में अलग नियम हो सकते हैं।

सरकारी योजनाएं और कानूनी सपोर्ट

सरकार ने कई ऐसी योजनाएं और सुधार लागू किए हैं जिनसे बेटियों के अधिकार और सुरक्षा को बढ़ावा मिले। उदाहरण के तौर पर ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाएं बेटियों की शिक्षा के लिए हैं, लेकिन संपत्ति में अधिकार का मुद्दा अलग है।

कानून के माध्यम से बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर हिस्सा देने का प्रावधान मुख्य रूप से हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम के तहत होता है।

सरकार यह सुनिश्चित करती है कि बेटियों को अपने अधिकारों की पूरी जानकारी मिले। इसके लिए कानूनी जागरुकता अभियान, मुफ्त लीगल एड तथा हेल्पलाइन नंबर जैसी सुविधाएं दी गई हैं। अगर कभी किसी बेटी का हक छीना जाता है, तो वह अदालत में जाकर न्याय मांग सकती है।

नया नियम कैसे लागू होता है?

अगर आप अपने परिवार में पिता की संपत्ति का बंटवारा चाहते हैं, तो पहले यह देखें कि पिता ने वसीयत बनाई है या नहीं। अगर बनी है, तो उसकी शर्तें माननी पड़ती हैं— चाहे उसमें बेटी को हिस्सा मिले या न मिले। अगर वसीयत नहीं है, तो बेटी और बेटा दोनों बराबर के हकदार होते हैं।

हिंदू कानून के तहत अगर बेटी शादी के बाद भी पिता की संपत्ति पर दावा कर सकती है। यह अधिकार बेटा-बेटी दोनों का समान है, चाहे वह कहीं भी रह रही हो।

अगर कोई पक्ष बंटवारे से असंतुष्ट है या हक से वंचित किया गया है, तो वह ज्यादा जानकारी पाने के लिए लोकल तहसील या कानूनी सलाहकार से संपर्क कर सकता है।

निष्कर्ष

तो कुल मिलाकर, ऐसा कोई नया सरकारी कानून या स्कीम नहीं है जिसमें बेटियों को पिता की संपत्ति से बाहर किया गया हो। बेटी को पिता की संपत्ति में पूरे अधिकार हैं, अगर वसीयत से बाहर नहीं किया गया है। समाज में समानता की दिशा में यह जरूरी है कि लोग सही जानकारी रखें और बेटियों को उनकी संपत्ति में बराबर का हक मिले।

Leave a comment

Join Whatsapp