भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू होने के बाद टैक्स संरचना को सरल बनाने का बड़ा प्रयास किया गया था। हालांकि, समय-समय पर इसमें बदलाव की मांग उठती रही। केंद्र सरकार ने इन मांगों को ध्यान में रखते हुए सितंबर से GST 2.0 की घोषणा की है।
नए ढांचे के तहत टैक्स स्लैब को और सरल तथा स्पष्ट बनाने की कोशिश की गई है। पहले जहां कई स्तरों पर अलग-अलग दरें थीं, वहीं अब सरकार ने मुख्य रूप से तीन नई दरों को लागू करने का निर्णय लिया है। इसका सीधा असर आम लोगों, व्यापारियों और उद्योगों पर पड़ेगा।
सरकार का दावा है कि इस बदलाव से टैक्स संग्रह और पारदर्शिता दोनों में बढ़ोतरी होगी। नई दरें विशेष रूप से इस तरीके से तय की गई हैं कि आम उपभोक्ता पर अतिरिक्त बोझ न पड़े और लग्जरी वस्तुओं एवं सेवाओं पर अधिक कर लगाया जाए।
GST 2.0
GST 2.0 को सरकार ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स का नया संस्करण बताया है। इसका उद्देश्य शुरुआत से चले आ रहे जटिल टैक्स ढांचे को आसान बनाना है। पहले कई बार दरों के अंतर के कारण व्यापारियों को दिक्कत होती थी।
नई व्यवस्था में स्लैब को कम कर तीन प्रमुख हिस्सों में विभाजित किया गया है। इससे कारोबार करना सरल होगा, टैक्स चोरी पर रोक लगेगी और उपभोक्ताओं को दरें आसानी से समझ आ सकेंगी।
नई GST दरें
सरकार ने सितंबर से जो नई दरें तय की हैं, उनमें तीन मुख्य स्लैब शामिल हैं।
पहला स्लैब 5% का होगा, जिसमें रोजमर्रा की जरूरत की चीजें और आम उपयोग वाले उत्पाद शामिल होंगे। इन वस्तुओं पर पहले से ही कम टैक्स लगता रहा है और सरकार ने इसे यथावत रखने या और सरल करने पर जोर दिया है।
दूसरा स्लैब 18% का होगा, जिसमें सामान्य सेवाएं, मैन्युफैक्चरिंग और अधिकतर इंडस्ट्री प्रोडक्ट्स शामिल होंगे। इस दर को सरकार ने संतुलन वाला स्लैब बताया है क्योंकि यह राजस्व भी लाता है और उपभोक्ता पर अपेक्षाकृत हल्का बोझ भी डालता है।
तीसरा स्लैब 40% का है, जिसे सरकार ने विशेष रूप से लग्जरी आइटम्स और उच्च स्तरीय उत्पाद एवं सेवाओं के लिए रखा है। इसमें महंगी गाड़ियां, एसी, प्रीमियम ब्रांड्स और अन्य विलासिता की चीजें शामिल की जाएंगी। इस कदम से आम उपभोक्ता सुरक्षित रहेगा जबकि लग्जरी उपभोक्ताओं से अधिक टैक्स वसूला जाएगा।
सरकार का उद्देश्य
नई व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य टैक्स की प्रणाली को और पारदर्शी बनाना है। जब सबके लिए दरें स्पष्ट होंगी, तो न केवल उपभोक्ता को सुविधा होगी बल्कि व्यापारियों को भी किसी जटिलता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
सरकार को उम्मीद है कि इससे टैक्स अनुपालन बढ़ेगा और राजस्व संग्रह में मजबूती आएगी। साथ ही SME और छोटे कारोबारियों को तय ढांचा समझना आसान होगा और उन्हें कम कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ेगा।
उद्योग और आम जनता पर प्रभाव
आम जनता पर इसका असर काफी संतुलित होने की उम्मीद जताई जा रही है। क्योंकि रोजमर्रा के सामान और बुनियादी जरूरत की चीजें 5% के दायरे में आ रही हैं, ऐसे में आम आदमी पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।
उद्योग जगत के लिए यह सुधार राहत लाने वाला माना जा रहा है। पहले कई दरों के चलते उद्योगों को इनपुट क्रेडिट और रिटर्न फाइलिंग में दिक्कतें आती थीं। अब तीन मुख्य दरें होने से बहीखाते और कम्प्लायंस दोनों सरल होने वाले हैं।
लग्जरी इंडस्ट्री के लिए नए नियम थोड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं क्योंकि 40% टैक्स दर निश्चित रूप से लागत को बढ़ाएगी। इससे लग्जरी उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार आएगा, लेकिन सरकार का मानना है कि इसका असर समाज के सीमित तबके तक ही रहेगा।
सरकार की योजनाएं और उम्मीदें
GST 2.0 के साथ सरकार ने यह आश्वासन दिया है कि तकनीकी ढांचा भी और मजबूत बनाया जाएगा। रिटर्न फाइलिंग, बिलिंग और डिजिटल पेमेंट्स की प्रक्रिया को तेज और आसान बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
इसके अलावा राज्यों को डाटा-आधारित रिपोर्टिंग मिलेगी ताकि राजस्व हिस्सेदारी पारदर्शी हो। इससे राज्यों और केंद्र दोनों को भरोसेमंद तरीके से धनराशि का वितरण संभव होगा।
सरकार की कोशिश है कि इससे “एक देश, एक टैक्स” की अवधारणा और मजबूत हो तथा भारत में व्यापारिक माहौल निवेशकों के लिए और आकर्षक बने।
निष्कर्ष
GST 2.0 को टैक्स सुधार के बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है। इसका उद्देश्य टैक्स ढांचे को सरल, पारदर्शी और संतुलित बनाना है। आम जनता पर इसका बोझ हल्का रहेगा जबकि लग्जरी सेक्टर पर अतिरिक्त टैक्स से राजस्व में वृद्धि होगी।
नई संरचना से व्यापार जगत और सरकार, दोनों को लाभ मिलने की संभावना है और देश की अर्थव्यवस्था में सुधार का रास्ता और सुगम हो सकता है।