Property Rights: कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश, अब 2 नहीं 1 जैसा हक बेटा-बेटी दोनों को

Published On: September 5, 2025
Property Rights

भारत में परिवार और संपत्ति के मामलों में न्यायिक और सामाजिक दृष्टिकोण दिन-प्रतिदिन बदल रहा है। खासकर बेटा-बेटी के बीच संपत्ति के अधिकारों को लेकर कई बार विवाद सामने आते रहे हैं। हाल ही में, कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जिसमें पिता की संपत्ति में बेटे और बेटी को बराबरी का अधिकार देने की बात कही गई है।

यह फैसला न केवल बेटियों के हक की रक्षा करता है, बल्कि समाज में लैंगिक समानता को भी बढ़ावा देता है। इस फैसले से पहले, अक्सर संपत्ति के अधिकारों में बेटों को प्राथमिकता दी जाती थी और बेटियों की हिस्सेदारी कम होती थी। लेकिन अब कोर्ट ने साफ कर दिया है कि संपत्ति समान रूप से बेटा और बेटी दोनों की होनी चाहिए।

यह फैसला पांचल कानूनों और संविधान के आधार पर लिया गया है, जिससे बेटियों को भी वही अधिकार मिलेंगे जो बेटों को मिलते हैं। सरकार और न्याय व्यवस्था ने इस दिशा में कई कदम उठाए हैं ताकि महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित हो सकें।

Property Rights: New Rules

यह मुख्य कानून या योजना नहीं है, बल्कि न्यायपालिका का एक ऐतिहासिक निर्णय है जो फैमिली लॉ तथा हिन्दू वारिस अधिनियम के अंतर्गत आता है। इस फैसले के तहत, अब बेटा और बेटी पिता की संपत्ति में बराबर के वारिस माने जाएंगे। इसका मतलब यह है कि बेटे को जितनी हिस्सेदारी मिलती है, बेटी को भी उतनी ही हिस्सेदारी मिलेगी। इससे पहले कानून में बेटों को अधिक अधिकार दिया जाता था। यह फैसला सामाजिक और कानूनी दोनों दृष्टि से एक बड़ा बदलाव है।

यह अधिकार स्वाभाविक तौर पर हिन्दू धर्म, मुस्लिम और अन्य समुदायों के कानूनों के तहत अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्पष्ट किया है कि बेटी को भी पिता की संपत्ति में पूर्ण अधिकार मिलना चाहिए। इस फैसले का मकसद महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र और समान दर्जे पर लाना है ताकि वे संपत्ति के मामलों में किसी भी तरह की अन्याय से बच सकें।

इस फैसले से क्या फायदे होंगे?

सबसे बड़ा फायदा यह है कि बहनें भी परिवार की संपत्ति में पूरी भागीदार बनेंगी। इससे परिवार में महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। पारंपरिक सोच में बेटा ही परिवार का सहारा माना जाता था, लेकिन अब बेटा-बेटी समान रूप से संपत्ति के हकदार होंगे, जिससे बेटियों को भी अपने भविष्य को सुरक्षित करने का अधिकार मिलेगा।

इसके अलावा, यह फैसला लैंगिक समानता को भी प्रोत्साहित करता है, जो देश की सामाजिक प्रगति के लिए जरूरी है। इससे बेटियों के खिलाफ भेदभाव में कमी आएगी और उन्हें परिवार की संपत्ति में अधिकार मिलने से उनका आत्मसम्मान भी बढ़ेगा।

सरकार या अन्य पक्षों की क्या भूमिका है?

यह निर्णय मुख्य रूप से सुप्रीम कोर्ट का है और इसे लागू करने के लिए सरकार भी कदम उठा रही है। सरकार ने बेटियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनका मकसद महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाना है। इनमें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ-साथ संपत्ति के कागजी कामों में समान अधिकार दर्ज कराना शामिल है।

सरकार भी परिसंपत्तियों के पंजीकरण के मामलों में बेटियों के नाम पर आधिकारिक दस्तावेज जारी करने को प्रोत्साहित कर रही है ताकि विवाद के मौके कम हों। इससे पारिवारिक संपत्ति के हिस्से के मामले में बेटियों को कानूनी सहायता भी मिलती है।

आवेदन प्रक्रिया और कैसे करें अपना हक कायम?

अगर आपके परिवार में संपत्ति का विवाद या बेटा-बेटी के हिस्से को लेकर कोई समस्या है, तो आप कोर्ट में जाकर इसे दर्ज करा सकते हैं। इसके लिए संपत्ति के दस्तावेज और परिवार के सभी सदस्यों का विवरण देना होता है। बेटी को भी कानूनी तौर पर वारिस माना जाता है, इसलिए उसे भी परिवार की संपत्ति में अपना हिस्सा मिला होना चाहिए।

इसके अलावा, स्थानीय सरकार या अधिनियम के तहत पंजीकरण कार्यालय से सम्पत्ति के नामांकन में बदलाव करवाना जरूरी होता है। इसमें सही दस्तावेज जमा करना और कोर्ट के आदेश का पालन करना अनिवार्य होता है। अधिवक्ता की मदद से यह प्रक्रिया आसान हो सकती है।

निष्कर्ष

पिता की संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर का अधिकार देना न केवल संविधान के मूल्यों के अनुरूप है, बल्कि यह समाज में महिलाओं की स्थिति मजबूत करने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला बेटियों को आर्थिक सुरक्षा और सम्मान प्रदान करता है, जिससे समाज में समानता और न्याय स्थापित होता है। अब बेटियां भी अपनी संपत्ति में अधिकार कर सकेंगी और परिवार के हर निर्णय में समान भागीदार बनेंगी। इस फैसले से महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक नया युग शुरू हुआ है।

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